एक मदरसा : जो अब है वैदिक गुरुकुल
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पुसगंवा, बरेली की कहानी है यह…यहीं लियाकत और अनवरी के बेटे मुख्तार अजीम के साथ निकाह पढ़कर आई थी महरूलनिसा…पढ़ाई के दौरान मुख्तार अजीम को कई श्रेष्ठ और योग्य हिन्दु शिक्षकों का आशीर्वाद मिला था, इस कारण दिनचर्या में कई काम वे हिन्दुओं के रीति-रिवाज अनुसार ही करते थे। 1992 में उन्हें कहीं से स्वामी दयानंद का नूरे हकीकत यानी कि सत्यार्थ प्रकाश मिला और उन्होंने घर लाकर रख दिया।
महरूलनिसा के हाथ लग गई एक दिन यह किताब तो वह उसे पढ़ने लगी, इसी दौरान मुख्तार अजीम कुछ कट्टरपंथी मुस्लिमों के संसर्ग में आया और उन्होंने एक इस्लामिक मदरसे की स्थापना की। उनका मकसद था कि इस मदरसे में कट्टरपंथी पैदा किए जाएं, ताकि सारे हिन्दुस्तान को मुस्लिम देश बनाया जा सके। खैर मदरसा चल निकला और उनमें कुछ देशद्रोही पैदा होते, उससे पहले ही महरूलनिसा ने एक दिन अपने पति को उन्हीं का लाया सत्यार्थ प्रकाश ध्यान से पढ़ने की सलाह दी। उन्होंने पत्नी की सलाह पर वह अमर ग्रंथ पढ़ा तो उनके विचार बदल गए और उन्होंने भारी जनसमूह के सामने के 27 जून 2014 को वैदिक धर्म अंगीकार कर लिया। महरूलनिसा उस दिन बहुत खुश हुई थी और उन्होंने अपना नाम रखा था चंद्रकांता देवी…अपने चार पुत्र और दो बेटियों के नाम उन्होंने इस प्रकार रखे : कौशल मिश्र पूर्व नाम ईसुफ, ईशप्रिय पूर्व नाम ईशुल, तेजस आर्य पूर्व नाम शाकिब, कुमारी प्रभा पूर्व नाम नूरबी, श्रुति आर्य पूर्व नाम शहनाज, और प्रकर्षदेव और अपने पति का नाम रखा प्रणव मिश्र…चूंकि उनके पति संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे और ये स्वयं भी संस्कृत जान गई थी, इसलिए इन्होंने वैदिक वर्णव्यवस्था अनुसार अपने को ब्राह्मण वर्ण में स्थापित किया।
और फिर उसे मदरसे को तोड़कर वहां पर वैदिक गुरुकुल बना गया…यानी कि अब वे वेदों के प्रचारक हो गए थे…